स्वप्न सृजन
डूबते सूरज की रोशनाई में
आज फिर
वो सतरंगी चेहरा देखा हमने।
यादों के दरीचों से झाँकता
कपासी मेघों की चादर पर सवार
सूरज की किरणों को सहलाता
दिशा दिखाता
लाली बरसाता
एक और दिन हुआ गर्क
क्षितिज पार
इंद्र धनुष के रंग फीके हो चले मगर
क्या सगुन छुपाए है
ये बौछार
डूबती लाली में
तिमिर पार
आँखें ढूँढतीं अब भी
वही रुख़सार
तन्हा शाम के सूने सफ़र में
आज फिर
एक स्वपन का सृजन किया हमने
डूबते सूरज की रोशनी में आज
वो सतरंगी चेहरा फिर देखा हमने।
16 फरवरी 2005
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