अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

अनुभूति में राय कूकणा की रचनाएँ

नई रचना
सबका लेखा सम अनुपाता

कविताओं में -
उम्मीद की बुढ़िया
रेत की मुट्ठी सा यह जीवन
स्वप्न सृजन
नवऋतु का सुनिश्चित अभिनंदन
समृतियों के सागर के मोती

 

नव ऋतु का सुनिश्चित अभिनंदन

अनागत भय से कंपित मन
विश्वास की डोर पर हिलती पतंग
विभीत हृदय की साहसी सूरत पर
कैसा भय और वेदना का संगम।

शुष्क ठूँठ-सा तरु तीर पर
कोटर में पक्षी का क्रंदन
इसी पेड़ का साया जल में
मानो देख रहा मैं दर्पण।

पातहीन पतझड़ से पीड़ित
शीत हवाओं के आनन में
अपने अंतर की ऊष्मा से
देता आश्रय और आलिंगन।

निर्भय नज़र कृत पर केंद्रित है
फल से मुक्त किए सब संबंध
अडिग तपी-सा ध्यान मग्न है
नियति नदी से बाँधे बंधन।

नव प्रवाह नव नीर से सिंचित
नव ऋतु का सुनिश्चित अभिनंदन

फल फूलों से झुकें डालियाँ
पाखी पथिक को सब कुछ अर्पण।

क्षीण हो चला भयप्रद भ्रम
मन मे जागी एक नई उमंग।
कैसा भय अब अविचल है मन
विश्वास की डोर, लहराए पतंग।

16 फरवरी 2005

 

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter