अनुभूति में
मीनाक्षी धन्वन्तरि की
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फूले फूल कदंब-
वर्षा
ऋतु में |
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निराश न हो मन
अकेला ही चलना होगा जीवन पथ पर
अकेला ही बढ़ना होगा मृत्यु पथ पर
इस दुनिया में भटक रहा तू व्याकुल होकर
रिश्तों के मोह में ऊलझा तू आकुल होकर
उस दुनिया में जाएगा तू निष्प्राण होकर
नवरूप पाएगा प्रकाशपुंज से प्रकाशित होकर
निराश न हो मन
जननी ने जन्म दिया स्नेह असीम दिया
रक्त से सींचा रूप दिया आकार दिया
बहती नदिया सा आगे क़दम बढ़ा दिया
ममता ने मुझे निपट अकेला छोड़ दिया
निराश न हो मन
जन्मदाता ने उँगली पकड़ चलना सिखाया
प्यार और दुलार से सुदृढ़ बाँहों में झुलाया
निर्मोही बन नव आगंतुक संग विदा कराया
महासमुद्र गंभीर बना इक आँसू न बहाया
निराश न हो मन
जन्म के संगी साथी मिल खेले हर पल
जीवन के कई मौसम देखे हमने संग संग
पलते रहे हम नया नया लेकर रूप रंग
बढ़ते बढ़ते अनायास बदले सबके रंगढंग
निराश न हो मन
नवजीवन शुरू हुआ जन्मजन्म का साथी पाकर
नवअकुंर फूटे प्यारी बगिया महकी खुशबू पाकर
हराभरा तरूदल लहराया मेरे घरआँगन में आकर
जीवनरस को पर सोख लिया पतझर ने आकर
निराश न हो मन ।
१६ मार्च २००१ |