अनुभूति में
मीनाक्षी धन्वन्तरि की
रचनाएँ-
नई
रचनाओं में-
तोड़ दो सारे बंधन
निष्प्राण
बादलों की शरारत
रेतीला रूप
छंदमुक्त में-
मेरा अनुभव
गीतों में
किनारे से लौट आई
युद्ध की आग में
निराश न हो मन
संकलन में-
वसंती हवा-
वासंती वैभव
धूप के पाँव-
माथे पर
सूरज
शुभ दीपावली-
प्रकाश या अंधकार
फूले फूल कदंब-
वर्षा
ऋतु में |
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बादलों की
शरारत
खिलखिलाती धूप से
बादलों ने छेड़ाखानी की
धरा की ओर दौड़ती किरणों का
रास्ता रोक लिया
इधर उधर से मौका पाकर
बादलों को धक्का देकर
भागी किरणें
कोई सागर पर गिरी
तो कोई गीली रेत पर
हाँफते हाँफते किरणों ने
आकुल होकर छिपना चाहा
बादलों की शरारत देख
लाल पीली धूप तमतमा उठी
अब बादलों की बारी थी
दुम दबा कर भागने छिपने की
चिलचिलाती धूप से छेड़ाखानी
मँहगी पड़ी
अपने ही वजूद को बचाने की
नौबत आ पड़ी !
२५ जुलाई २०११
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