अनुभूति में
मीनाक्षी धन्वन्तरि की
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प्रकाश या अंधकार
फूले फूल कदंब-
वर्षा
ऋतु में
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युद्ध की आग में
विश्व युद्ध की आग में जल रहा
मानव का हृदय सुलग रहा
प्रेम का सिन्धु सागर सूख रहा
द्वेष भाव के दलदल में डूब रहा
विश्व युद्ध की आग में जल रहा
मानव का हृदय सुलग रहा
भोला बचपन हाथों से छूट रहा
मस्त यौवन रस भी सूख रहा
विश्व युद्ध की आग में जल रहा
मानव का हृदय सुलग रहा
मातृहीन शिशु का क्रन्दन गूंज रहा
बिन बालक मां को न कुछ सूझ रहा
विश्व युद्ध की आग में जल रहा
मानव का हृदय सुलग रहा
पिता अपने बुढ़ापे का सहारा खोज रहा
पुत्र भी पिता के प्यार को तरस रहा
विश्व युद्ध की आग में जल रहा
मानव का हृदय सुलग रहा
बहन का मन भाई बिन टूट रहा
प्राण भाई का बहन बिन छूट रहा
विश्व युद्ध की आग में जल रहा
मानव का हृदय सुलग रहा
प्रेममयी सहचरी का न साथ रहा
मनप्राण का सहचर न पास रहा
विश्व युद्ध की आग में जल रहा
मानव का हृदय सुलग रहा
मित्र का मित्र से विश्वास उठ रहा
मानव मानव का नाता टूट रहा
विश्व युद्ध की आग में जल रहा
मानव का हृदय सुलग रहा
१६ मार्च २००१
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