नाज़बरदारियाँ नहीं होतीं
नाज़बरदारियाँ नहीं होतीं
हमसे मक़्क़ारियाँ नहीं होतीं
दिल में जो है वही ज़बान पे है
हमसे अय्यारियाँ नहीं होतीं
कम न होती ज़मीं ये जन्नत से
गर ये बदकारियाँ नहीं होतीं
इतनी पी है कि होश हैं गुम—सुम
अब ये मय-ख़्वारियाँ नहीं होतीं
अब यहाँ बुज़दिलों के डेरे हैं
अब वो सरदारियाँ नहीं होती
जिन रुख़ों पर सजी हो शर्म-ओ-हया
उनपे फुलकारियाँ नहीं होती
'चाँद'! जलते चिनार देखे हैं
मुझसे गुलकारियाँ नहीं होती।
२२ सितंबर २००८
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