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अनुभूति में चाँद हदियाबादी की रचनाएँ-

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कौन कहता है
ग़म गुसारों की बात
दरमियाँ यों न फ़ासिले होते
नाज़बरदारियाँ नहीं होतीं
मेरे हाथों की लकीरों में

वो एक चाँद-सा चेहरा

अंजुमन में-
अपनी नज़र से
किस तरह
जो भी मिलता है
प्यार के काबिल नहीं
मेरे वजूद में
रंगों की बौछार

 

अपनी नज़र से

अपनी नज़र से आज गिरा दीजिए मुझे
मेरी वफ़ा की कुछ तो सज़ा दीजिए मुझे

यक तरफ़ फ़ैसले में इंसाफ था कहाँ
मेरा कसूर क्या था बता दीजिए मुझे

दो जिस्म एक जान है बीमार हैं दोनों
उसको शफ़ा मिलेगी दुआ दीजिए मुझे

मैं जा रहा हूँ आऊँगा शायद ही लौट कर
ऐसे ना बार-बार सदा दीजिए मुझे

इस दौर में अब इब्ने मरयम नहीं मिलते
बस कान में अंजील सुना दीजिए मुझे

रोते हुए बच्चे ने माँ बाप से कहा
बस चाँद आसमान से ला दीजिए मुझे

सोया रहा हूँ चाँद मैं ग़फ़लत की नींद में
रुख़सत का आया वक्त जगा दीजिए मुझे

16 अक्तूबर 2007

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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