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कौन कहता है
ग़म गुसारों की बात
दरमियाँ यों न फ़ासिले होते
नाज़बरदारियाँ नहीं होतीं
मेरे हाथों की लकीरों में

वो एक चाँद-सा चेहरा

अंजुमन में-
अपनी नज़र से
किस तरह
जो भी मिलता है
प्यार के काबिल नहीं
मेरे वजूद में
रंगों की बौछार

 

मेरे हाथों की लकीरों में

मेरे हाथों की लकीरों में मोहब्बत लिख दे
मेरे क़ातिब मेरी तक़दीर में रहमत लिख दे

वो जो मेरा है वही रूठ गया है मुझसे
उसके दिल में तू मेरे वास्ते उल्फ़त लिख दे

वो अदावत की क़िताबों को लिए बैठे हैं
उन क़िताबों में बस इक लफ़्ज़—ए—मुहब्बत लिख दे

मेरी जेबों में खनक कर भी सकूँ देते हैं
खोटे सिक्कों के मुक़द्दर में तू बरक़त लिख दे

शम्अ जलते ही मैं परवाने—सा जल जाता हूँ
तू मेरी राख़ को चाहे तो शहादत लिख दे

चाँद तारों की तरह चमके मुक़द्दर उनका
ये दुआ है मेरी उनके लिए शोहरत लिख दे

२२ सितंबर २००८

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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