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अनुभूति में चाँद हदियाबादी की रचनाएँ-

नई रचनाएँ-
कौन कहता है
ग़म गुसारों की बात
दरमियाँ यों न फ़ासिले होते
नाज़बरदारियाँ नहीं होतीं
मेरे हाथों की लकीरों में

वो एक चाँद-सा चेहरा

अंजुमन में-
अपनी नज़र से
किस तरह
जो भी मिलता है
प्यार के काबिल नहीं
मेरे वजूद में
रंगों की बौछार

 

कौन कहता है

कौन कहता है लबो रुख़सार की बातें न हों
सुर्खियों की बात हो अख़बार की बातें न हों

दुश्मनों का जो रवैया है ये उन पे छोड़ दो
दोस्तों में तो कभी इंकार की बातें न हों

एक हो तुम पाँव हैं दो कश्तियों में किसलिए
इक तरफ़ हो जाओ तो बेकार की बातें न हों

सब ज़माने से न कह दें कान की कच्ची हैं ये
घर की दीवारों में अब अग़यार की बातें न हों

क्यों ज़माने को ख़बर हो जानेमन! ये जान लो
प्यार की बातों में अब तकरार की बातें न हों

"चाँद" हरदम गर्दिशे अय्याम में चलता रहा
आज इसके सामने रफ़्तार की बातें न हों।

२२ सितंबर २००८

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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