जो भी मिलता है
जो भी मिलता है वो लगता है मुझे हारा हुआ
वक्त के हाथों या फिर हालात का मारा हुआ
कौन सुनता है किसी का दर्द इस माहौल में
हर किसी की आँख का पानी है अब खारा हुआ
शोरोगुल में दब के रह जाती हैं आवाज़ें सभी
दम घुटा है सोज़ का और साज़ नाकारा हुआ
दो बदन इक जान थे उड़ते रहे आकाश में
आए जब धरती पे दोनों उनका बँटवारा हुआ
रात भर जागा किए बिरहा की काली रात में
''चाँद'' आई नींद गहरी जब था उजियारा हुआ
16 अक्तूबर 2007
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