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अनुभूति में चाँद हदियाबादी की रचनाएँ-

नई रचनाएँ-
कौन कहता है
ग़म गुसारों की बात
दरमियाँ यों न फ़ासिले होते
नाज़बरदारियाँ नहीं होतीं
मेरे हाथों की लकीरों में

वो एक चाँद-सा चेहरा

अंजुमन में-
अपनी नज़र से
किस तरह
जो भी मिलता है
प्यार के काबिल नहीं
मेरे वजूद में
रंगों की बौछार

 

किस तरह

किस तरह ख़ाना ख़राब फिर रहे हैं हम जनाब
नींद में भी सो ना पाएँ देखते रहते हैं ख्वाब

वो हँसी हैं हमने माना और हैं वो पुर शबाब
हम भी उनसे कम नहीं हैं दिल के हैं यारों नवाब

दिल नहीं है अपने बस में ना ही बस में है दिमाग़
दर्द हमको दे दिए हैं इस जहाँ ने बेहिसाब

तुझको फुरसत से बनाया है ख़ुदा ने ख़ुश जमाल
फूल-सा चेहरा तेरा और मस्त आँखें लाजवाब

लोग कहते हैं शराबी ये ग़लत इल्ज़ाम है
जिस क़दर आँसू पिये हैं उस से कम पी है शराब

तू अँधेरे में छुपी है ऐ मेरी जाने ग़ज़ल
''चाँद'' हूँ आखिर तुझे मैं ही करूँगा बे-नकाब

16 अक्तूबर 2007

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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