अनुभूति में अर्चना हरित की रचनाएँ-
छंदमुक्त में-
चाह
तड़प
ले चलो मुझे मेरे साथी
तुकांत में-
अमर प्रेम
ज़िन्दग़ी
धु्रव तारा
संकलन में-
ममतामयी–मां के लिये
गुच्छे भर अमलतास–गर्मी की एक दोपहर
ज्योति पर्व–स्नेह दीप
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ध्रुव तारा
क्या है जो मुझ में अतृप्त है
कई बार खुद को विश्लेषण कर देखा
सब तो है जो मैंने चाहा
फिर यह आशा आकांक्षा क्यों
क्यों क्षितिज के पार का तारा
मुझे लगता है इतना प्यारा
चाँद की आशा नहीं होती कभी
बस देखती हूँ चाहती हूँ
हो मेरा अपना एक ध्रुव तारा
देख कर जिसको मेरी कल्पना को
मिलते रहे उड़ने के पंख
हर रात में इसी आशा में
आकाश पर ढूँढती हूँ
चमकते हैं बहुत से सितारे
चाँद भी देता आवाज मुझको
मगर बदली में छुपा रहता
कहीं मेरा वह अपना ध्रुव तारा . . . .
खेल है उसका कितना प्यारा
पल भर दिख कर मुझको
दे जाता अनगिनत सपनों की माला
है मुझको विश्वास उसपर
चमकता है बस जो मेरे लिये
कहीं मेरा वह अपना ध्रुव तारा . . .
खोज में उसकी मेरी आँखों ने
जला लिया है मन में एक दीप
जीवन की ऊंची नींची राहों पर
दिखाता रहे वह राह मुझको
चमकाता मेरी कल्पना का आधार
कहीं मेरा वह अपना ध्रुव तारा . . .
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