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वो जूता
उस फटे मोज़े को मैंने
छुपा तो लिया था दुनिया से,
जो मेरे हालात की अप्रकाशित-सी
कहानी को कह रहा था
और परिचय करवा रहा था वो मोज़ा
मुझसे ही मेरे अँगूठे का।
मगर मेरा जूता मुझे हिम्मत देता,
तैयार करता था मुझे दफ्तरों में
बस एक नौकरी पाने की ख़ातिर।
दुनिया भर की धूल छानता वो जूता
साथ देता रहा मेरा
मेरे बेरोज़गार से रास्तों पर।
वो पिघलती हुई सड़क की चिपकन, और
सूरज की तपिश को ता-उम्र झेलता रहा।
बढ़ता रहा कच्चे रास्तों पर,
लिखता रहा हर सफ़र का हिसाब।
मगर आज मेरे पास कोई रास्ता नहीं,
कि जा सकूँ चार कदम मैं अकेले चलकर,
वो जूता आज दम तोड़ता हुआ
मुँह खोलकर सो गया है।
9 जनवरी 2007
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