|
सफ़ेद होली
एक होली आज छुपकर
छत पर खामोश गुमसुम-सी
कभी आकाश तकती
कभी ज़मीन को निहारती
सोच में मग्न-सी
जैसे कहना चाह रही हो
कि कल रात उसको ही तो
जलाया गया था
लकड़ियों के बीच रखकर,
जब सब झूम रहे थे
उत्सव को मनाते हुए।
अतीत को याद करती हुई
आगे बढ़ती, फिर रुक जाती,
एक साल पहले ही तो
उसको लाया गया था
इसी घर में
लाल जोड़े में सजाकर,
कितनी रौनक थी
सभी के चेहरों पर।
बीस साल की वो
सहेली-सी ननद,
सोलहवाँ साल लपेटे हुए
वो बेटे जैसा नन्हा देवर।
आज भी वो उसी
तपती छत के नीचे
खोये थे धरातल में।
आख़िर उस घर से
चार मास पहले ही
जवान बेटा जो गया था
आकाश की तरफ़।
उसी आकाश की तरफ़,
जिसे सफ़ेद कपड़े में लिपटी
वो बैठकर छत से निहार रही थी
और छुपकर अकेले ही
मना रही सफ़ेद होली।।
9
सितंबर 2007
|