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लालटेन

चारों ओर काँच से
ढँका हुआ वह प्रकाश
उभरेगा किसी दरार से
जैसे नई-नई
कोई उम्मीद तलाशती है
झाँकती है आते कदमों को
जिसकी तलाश ने
मेरे मोज़ों में सूराख कर
नई दरार को
जन्म दे दिया हो।
फटे मोज़ों से झाँकता
वह अंगूठा
जैसे कह रहा हो
अँधेरे की दास्तान।

आज मैं भी तो
दरार खाई किस्मत से
मुँह निकालकर
तलाश रहा हूँ
उस रोशनी को
जो कभी झाँका करती
मेरे टूटे दरवाज़े की दरार से
जब कभी भी जलाता था
उस पर
अपने सूरज को
शाम होने से पहले
पुराने सूर्य की हत्या करके।

9 सितंबर 2007

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