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अनुभूति में डॉ. विनोद निगम की रचनाएँ

गीतों में-
अभी बरसेंगे घन
उनको लोग नमन करते हैं
एक और गीत का जनम हो
क्यों कि शहर छोटा है
खुली चाँदनी का गीत
घटनाओं के मन ठीक नहीं हैं
छंदों के द्वार चले आए
टूट गया एक बार फिर
यह क्या कम है
सबकी उड़तीं अलग ध्वजाएँ

 

उनको लोग नमन करते हैं

उनको लोग नमन करते हैं
बस्ती बड़ी अजीब यहाँ की
न्यारी है तहजीब यहाँ की
जिनके सारे काम गलत हैं,सुबह गलत है शाम गलत है
उनको लोग नमन करते हैं

जिनके हाथों जंग लगी है, जिनकी चलती सिर्फ जुबानें
माला लिये हुए लोगों की, उनके पीछे लगी कतारें
जिनके रिश्ते घने जुल्म से, जो अवसर के हाथ बिक गए
उनके प्रवचन चौराहों पर, उनके हिस्से वैभव सारे
बिगड़े सारे काज यहाँ के
उल्टे रीति॰ रिवाज यहाँ के
जिनकी नीयत ठीक नहीं हे, जिनके मकसद ठीक नहीं हैं
उनको लोग नमन करते हैं

बकवासों से अधिक नहीं है,जिन्हें त्याग की, तप की बातें
उनके नाम वसीयत कर दी, सुख सुविधाएँ जनम जनम की
जो,मंदिर क्या ईश्वर तक की कर लेते हैं सौदेबाजी
उनके माथे रोली चन्दन, उनके हाथों ध्वजा धरम की
बिगड़ी सारी परम्पराएँ
बड़ी गलत चल रही हवाएँ
जिनके सभी अधूरे वादे, जिनके सारे गलत इरादे
उनको लोग नमन करते हैं

जिनके घर,ईमान पोस्टरों में टंग कर दम तोड़ चुका है
उनका कीर्तन लोग कर रहे , उनके यश ढो रही दिशाएँ
जिनके पाप बोलते छत पर, गलियाँ जिनके दोष गा रहीं
उनका द्वार॰द्वार अभिनन्दन, उनके गुण गा रही सभाएँ
जाने कैसा चलन यहाँ का
बिगड़ा वातावरण यहाँ का
जो युग के अनुकूल नहीं हैं, जिनके ठीक उसूल नहीं हैं
उनको लोग नमन करते हैं

३० मार्च २००९

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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