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अनुभूति में डॉ. विनोद निगम की रचनाएँ

गीतों में-
अभी बरसेंगे घन
उनको लोग नमन करते हैं
एक और गीत का जनम हो
क्यों कि शहर छोटा है
खुली चाँदनी का गीत
घटनाओं के मन ठीक नहीं हैं
छंदों के द्वार चले आए
टूट गया एक बार फिर
यह क्या कम है
सबकी उड़तीं अलग ध्वजाएँ

 

क्यों कि शहर छोटा है

खुलकर चलते डर लगता है, बातें करते डर लगता है
क्यों कि शहर छोटा है

बहुत लोग हैं, बहुत जबानें,जो कि बिना जाने पहचाने
सिर पर राख लगा देते हैं, तिरछी आँख लगा देते हैं
यहाँ आँख से कहीं अधिक विश्वास कान की क्षमता पर है
यहाँ देखते डर लगता है, दृष्टि फेंकते डर लगता है
क्यों कि शहर छोटा है

जो कहने की बात नहीं है, वही यहाँ दुहराई जाती
जिनके उजले हाथ नहीं हैं, उनकी महिमा गाई जाती
यहाँ ज्ञान पर, प्रतिभा पर, अवसर का अंकुश बहुत कड़ा है
सब अपने धन्धे में रत हैं, हाँ न्याय की बात गलत है
क्यों कि शहर छोटा है

ऊँचे हैं लेकिन खजूर से, मुँह है इसीलिये कहते हैं
जहाँ बुराई फूले॰पनपे, वहाँ तटस्थ बने रहते हैं
नियम और सिद्धान्त, बहुत ढंगों से परिभाषित होते हैं
यहाँ बोलना ठीक नहीं है, कान खोलना ठीक नहीं है
क्यों कि शहर छोटा है

बुद्धि यहाँ पानी भरती है, सीधापन भूखों मरता है
उसकी बड़ी प्रतिष्ठा है, जो सारे काम गलत करता है
यहाँ मान के नापतौल की, इकाई कंचन है धन है
कोई सच के नहीं साथ है, यहाँ भलाई बुरी बात है
क्यों कि शहर छोटा है

खुलकर चलते डर लगता है, बातें करते डर लगता है
क्यों कि शहर छोटा है

३० मार्च २००९

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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