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सबकी उड़ती अलग ध्वजाएँ
इतने सारे लोग, जमाने भर की बातें
सबकी क्षमताएँ विशाल हैं,सबकी बड़ी बड़ी औकातें
लेकिन कोई सच्चाई के निकट नहीं है
लेकिन कोई तरुणाई के निकट नहीं है
आदर्शों के स्वर ऊंचे हैं, चारों तरफ लग रहे नारे
सबने पांव तले तम रौंदा, सबके कन्धों पर उजियारे
सबके अलग अलग पथ-रथ हैं, सबकी उड़ती अलग ध्वजाएँ
किन्तु स्वर्ण के सिंहासन पर नत मस्तक सारे के सारे
सभी क्रान्ति के उन्नायक हैं
सब प्रकाश-रथ के वाहक हैं
लेकिन कोई सच्चाई के निकट नहीं है
सब जनता के शुभ चिन्तक हैं, सब जनता के लिये मर रहे
भाषण, सभा, जुलूस, सभी कुछ तो जनता के लिए कर रहे
वर्तमान आधार हीन हो, प्रश्न चिह्न पीते भविष्य को
इससे क्या, आँकड़े अभी भी खुशहाली के दिए धर रहे
नयी सुबह, सब लाने वाले
गीत भोर के गाने वाले
लेकिन कोई सच्चाई के निकट नहीं है
नंगा राष्ट्र, धनी शासक हैं, इतनी प्रगति कम नहीं होती
सत्ता के गहरे पानी से, काले हंस चुग रहे मोती
राजनीति फिर लौट गई है, झोपड़ियों से राजमहल में
प्रजातन्त्र के पाँव धस रहे, कुर्सी के अन्धे दल-दल में
सब अपने को हवन कर रहे
नया राष्ट्र का भवन कर रहे
लेकिन कोई सच्चाई के निकट नहीं है
३० मार्च २००९ |