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अनुभूति में विमलेश त्रिपाठी की रचनाएँ—

नयी रचनाओं में-
एक कविता इस तरह
झूठ मूठ समय के बीच
तुम्हारी हँसी से
तुम्हारी वजह से ही
भोपाल में बारिश
यदि तुम ईश्वर बनना चाहते हो

छंदमुक्त में-
आखर रह जाएँगे
तुम्हारे लिये एक कविता
तुमसे (एक)
तुमसे (दो)
देह की भाषा
बात यहीं खत्म नहीं होती

 

तुमसे- (दो)

थी इतनी-सी आशा
जलते तुम
जब भरता मेरे भीतर गहन अंधेरा

कैसी तो हो गई इस दुनिया में
तुम एक होते
आसरा मेरे सच के लिए

मिथक होते जाते आदर्श मेरे
खोजते नया अर्थ तुम्हारे ही होने में कहीं
नई साँस के साथ
हो पाते जिंदा नए सिरे से
तुम्हारे ही शब्दों का आसरा लेकर

हे मेरे अपने
थी बस इतनी-सी आशा

तुम चलते महज दो कदम मेरे साथ
मेरे समर्थन में
अपने सच से विलग
मेरे सच के लिए......

१९ सितंबर २०११

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