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अनुभूति में विमलेश त्रिपाठी की रचनाएँ—

नयी रचनाओं में-
एक कविता इस तरह
झूठ मूठ समय के बीच
तुम्हारी हँसी से
तुम्हारी वजह से ही
भोपाल में बारिश
यदि तुम ईश्वर बनना चाहते हो

छंदमुक्त में-
आखर रह जाएँगे
तुम्हारे लिये एक कविता
तुमसे (एक)
तुमसे (दो)
देह की भाषा
बात यहीं खत्म नहीं होती

 

भोपाल में बारिश

एक ही छतरी थी और बारिश थी
हमारी देह पर गिरती
जहाँ बारिश नहीं गिरती थी
वह जगहें भी भीग रही थीं

पेड़ देख रहे थे हमारा भीगना
एक डाली मचलकर दूसरी से जा मिलती थी
दूर आसमान में एक धुंधलका था
वह हमारा मन था

बहुत दूर एक गाँव के छप्पर से
बारिश की बूँदें टपक रही थीं
एक स्त्री का मन भीग रहा था
वह किसी की माँ थी
पत्नी थी किसी की
उसकी आँख के पानी से मेघ बने थे
और पूरे देश में फैल गए थे

जो भी हो फिलहाल हम भोपाल में थे
हम वाशिंगटन डीसी में नहीं हो सकते थे
हम पेरिस या लंदन में भी नहीं हो सकते थे

एक ही छतरी में हम दो थे
गुलजार के शब्दों में आधे-आधे भीगते
या एक दूसरे के शब्दों में आधे-आधे सूखते

हम राजेश जोशी से मिलने जा रहे थे
और सच मानिए हमें बिलकुल खबर न थी
कि राजेश जोशी शिमला के राष्ट्रपति निवास में
बारिश पर कविता लिख रहे थे

हमें नहीं पता था कि शिमला में भी
हो रही थी बारिश
और वहीं से चलकर वह भोपाल तक आ रही थी

मुझे याद है लड़की ने चलते-चलते रूक कर कहा था - मैं तुमसे प्यार करती हूँ,
उतना ही जितना राजेश जोशी कविता से करते हैं

एक हवा का तेज झोंका आया था तभी
और छतरी उड़ गई थी...।

१ मई २०१७

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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