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अनुभूति में विमलेश त्रिपाठी की रचनाएँ—

नयी रचनाओं में-
एक कविता इस तरह
झूठ मूठ समय के बीच
तुम्हारी हँसी से
तुम्हारी वजह से ही
भोपाल में बारिश
यदि तुम ईश्वर बनना चाहते हो

छंदमुक्त में-
आखर रह जाएँगे
तुम्हारे लिये एक कविता
तुमसे (एक)
तुमसे (दो)
देह की भाषा
बात यहीं खत्म नहीं होती

 

देह की भाषा

देह की अपनी एक भाषा
अपना व्याकरण

जब अन्य भाषाएँ हो उठतीं
कंटीली झाड़ियों की तरह जटिल
इतनी कि निकल पाना
करीब-करीब नामुमकिन

और पसर जाता आकाश जितना भारी
एक मौन
दो स्वत्वों के बीच

तब देह की भाषा में
लिखता हूँ कविताएँ

और इस तरह हर बार
बचा रहता है हमारा प्यार।

१ जून २०१५

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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