अनुभूति में
विमलेश त्रिपाठी की रचनाएँ—
नयी रचनाओं
में-
एक कविता इस तरह
झूठ मूठ समय के बीच
तुम्हारी हँसी से
तुम्हारी वजह से ही
भोपाल में बारिश
यदि तुम ईश्वर बनना चाहते हो
छंदमुक्त में-
आखर रह जाएँगे
तुम्हारे लिये एक कविता
तुमसे (एक)
तुमसे (दो)
देह की भाषा
बात यहीं खत्म नहीं होती
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तुम्हारे लिये एक कविता
तुम्हारे लिये लिखना चाहता हूँ एक बहुत सुंदर शब्द
बहुत सुंदर वाक्य
इस तरह बहुत सुंदर एक कविता
सबको मिलाकर कविता के रंग से
बनाना चाहता हूँ एक सुंदर चित्र
एक सुंदर आँख
एक सुंदर नाक
एक बहुत सुंदर दिल
और भी अलहदा कुछ
तुम्हे मुकम्मल करने हेतु जो जरूरी
लिखना चाहता हूँ-‘तुम’
जो कहीं दूर गाँव के किसी मेड़ पर किसी सूखते पेड़ की छाया में
बैठी हो
फटती हुई धरती के लिये बारिश की प्रतीक्षा में
तुम जो अँधेरे घर की एक बहुत छोटी खिड़की से
देख रही हो बाहर का एक कतरा धूप
तुम जो घूँघट के नीचे से ताक रही हो सिर्फ जमीन
तुम जिसे बहुत पहले आदमी की तरह होना था
तुम जिसे खुलकर हँसना
और बोलना था
देना था आदेश लेना था कठोर निर्णय अपने लिये और इस पृथ्वी के लिये
तुम जिसे देख इतिहास को आती है शर्म
होता है अपराध-बोध
तुम जो चिता पर बैठी हो एक पुरुष के साथ
तुम जो बँधी हो किसी पुरुष की बलिष्ठ बाजुओं में
तुम जो सुरक्षित नहीं हो घर और बाहर कहीं भी
तुम जिसको दुनिया ने मनुष्य से
एक चारे में तब्दील कर दिया है
तुम्हारे लिये लिखना चाहता हूँ एक कविता
और स्वीकार करना चाहता हूँ
अपने सारे अपराध
देखना चाहता हूँ तुम्हें
अब और कुछ नहीं
सिर्फ और सिर्फ एक मनुष्य।
१ जून २०१५
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