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बहुत दूर
क्षितिज
नहीं अंटता कविता में
न ही आकाश
न पृथ्वी
जो अंटता है
शब्द, स्पर्श, रूप, रस, गंध
वह इन्द्रियों की पकड़ में नहीं आता
सहृदय
जहाँ है
वहाँ सुबह की खाट पर
बिछे हैं समाचार
उनींदी आँखों में
देर रात के कार्यक्रमों के सपने
दूर है रे क्षितिज
आकाश दूर है
पृथ्वी भी बहुत दूर
१२ जनवरी २००९ |