ऐनक
मेरे अस्तित्व-सी पास रहना तुम
मेरी ऐनक
जब भी प्यार से उठाता हूँ तुम्हें
अपनी बाहों के आलिंगन से
समेट लेती हो तुम
मेरा दृश्य संसार
मुझे प्यार है तुम्हारी निर्मल पारदर्शिता से
जो मेरी आँखों के लिए नहीं रहती तटस्थ
मेरे धुंधले संसार के लिए
प्यार से होती हो धनिभूत
कि पहचान सकूँ अक्षर को
देय से उदार
कि साफ़ देख सकूँ दूर प्रकृति को
तुम अपनी मोहक गठन में
एक देह में
परा और अपरा
खोलती हो दोनों लोकों के द्वार
मेरे लिए
जब मेरी आँखों में रहती हो
तो रहती हो उपेक्षित
जब अदृश्य होती हो
तो ढूँढता फिरता हूँ
घर भर में
बताओ सृजन के इस संसार में
कहाँ होता मैं तुम्हारे बिना
१२ जनवरी २००९ |