अनुभूति में
सुभाष नीरव की रचनाएँ-
छंदमुक्त में-
ठोकरें
नदी
पढ़ना चाहता हूँ
परिंदे
माँ बेटी
हाइकु में-
राह न सूझे (दस हाइकु) |
|
ठोकरे
पहली ठोकर
उसके क्रोध का कारण बनी।
दूसरी ने
उसमें खीझ पैदा की।
तीसरी ठोकर ने
किया उसे सचेत।
चौथी ने भरा आत्मविश्वास
उसके भीतर।
अब नहीं करता वह परवाह
ठोकरों की!
१ मई २००६
|