अनुभूति में
सुभाष नीरव की रचनाएँ-
छंदमुक्त में-
ठोकरें
नदी
पढ़ना चाहता हूँ
परिंदे
माँ बेटी
हाइकु में-
राह न सूझे (दस हाइकु) |
|
नदी
पर्वत शिखरों से उतर कर
घाटियों-मैदानों से गुज़रती
पत्थरों-चट्टानों को चीरती
बहती है नदी।
नदी जानती है
नदी होने का अर्थ।
नदी होना
बेरोक निरंतर बहना
आगे आ़गे औ़र आगे।
कहीं मचलती, कहीं उद्विग्न, उफनती
किनारे तोड़ती
कहीं शांत -गंभीर
लेकिन,
निरंतर प्रवाहमान।
सागर से मिलने तक
एक महायात्रा पर होती है नदी।
नदी बहती है निरंतर
आगे औ़र आगे
सागर में विलीन होने तक
क्योंकि वह जानती है
वह बहेगी
तो रहेगी।
१ मई २००६
|