अनुभूति में
सुभाष नीरव की रचनाएँ-
छंदमुक्त में-
ठोकरें
नदी
पढ़ना चाहता हूँ
परिंदे
माँ बेटी
हाइकु में-
राह न सूझे (दस हाइकु) |
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पढ़ना चाहता
हूँ
मैं पढ़ना चाहता हूँ
एक अच्छी कविता।
कविता
कि जिसे पढ़ कर
खुल जाएँ
बाहर-भीतर के किवाड़
मन का कोना-कोना
गमकने-महकने लगे
ताज़ी हवा से।
कविता
कि जिसे पढ़ कर
मन के अँधेरों में
उतर आए
रोशनी की लकीर।
पढ़ना चाहता हूँ मैं
एक अच्छी कविता।
एक ऐसी कविता
जो उतरे मेरे भीतर
पहाड़ों पर से
जैसे उतरते हैं घाटियों में
जल-प्रपात
अपने मधुर संगीत के साथ।
कविता
तुम आना
तो आना
इसी तरह मेरे पास।
१ मई २००६
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