अनुभूति में
श्रद्धा यादव की रचनाएँ
नई रचनाओं में-
अकेले जीने का हौसला
अपना हक
नयी राहें
बस्ती की बेटी
मुखौटे चोरी हो गए
छंदमुक्त में-
एम्मा के नाम पाती
नियति
मुर्दाघर
नन्हीं सी चिड़िया
भय है
भोली सी चाहत
यातना गृह- १
यातना गृह- २
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मुखौटे चोरी हो गए
क्या चलन है इस देश का
मुखड़े मुखौटे बन गए
ये पुराना इसे बदलो
अब नया एक और लो
करते करते मुखौटों से
घर-दराजें भर गए
एक दिन जब खोजने हम
असली मुखड़े को लगे
जाने कहाँ किस भीड़ में
असली वो मुखड़ा, खो गए
घर पलट कर देखने से भी
न वो मुखड़ा फिर मिला
बचपने सा जा छुपा था
गर्त में जाने कहाँ
उम्र भर मुखौटों से
काम यों चलता रहा
हमें अपने मुखड़े की
तनिक भी सुध थी कहाँ।
१ जुलाई २०१७ |