अनुभूति में
श्रद्धा यादव की रचनाएँ
नई रचनाओं में-
अकेले जीने का हौसला
अपना हक
नयी राहें
बस्ती की बेटी
मुखौटे चोरी हो गए
छंदमुक्त में-
एम्मा के नाम पाती
नियति
मुर्दाघर
नन्हीं सी चिड़िया
भय है
भोली सी चाहत
यातना गृह- १
यातना गृह- २
|
|
अकेले जीने का
हौसला
जैसे जैसे बीतते हैं दिन
घनेरी होती जाती हैं रातें
बेटी बड़ी हो रही है
लकीरें बढ़ती जाती हैं खासी
माँ की चिंता है
गहने, कपड़ों की
पिता को मिलता ही नहीं
महँगे होते
सुयोग्य वर
महँगे होते सोने के साथ
महँगाते वरों की माँग
उठते-गिरते शेयर बाजार की तरह
लड़की के माँ बाप की उम्मीदें
अब दम तोड़ने लगी हैं
लड़की अब बड़ी से कुछ
ज्यादा हो गई है
उसकी भी
अपेक्षाएँ हैं
शर्तें हैं
और हौसला है
उसमें अकेले जीने का।
१ जुलाई २०१७ |