अनुभूति में
श्रद्धा यादव की रचनाएँ
नई रचनाओं में-
अकेले जीने का हौसला
अपना हक
नयी राहें
बस्ती की बेटी
मुखौटे चोरी हो गए
छंदमुक्त में-
एम्मा के नाम पाती
नियति
मुर्दाघर
नन्हीं सी चिड़िया
भय है
भोली सी चाहत
यातना गृह- १
यातना गृह- २
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भय है
भय है
शिथिल होने का
परंपरा से चली आ रही
परिपाटी के अंग होने का
भय है
मृत्यु का नहीं लम्बी वय का
'पाश' रह रह कर
तुम्हारी वो पंक्तियाँ याद आती है-
'न होना तड़प का
सब सहन कर जाना
घर से निकलना काम पर
और काम से लौट कर घर जाना
सबसे खतरनाक होता है
हमारे सपनों का मर जाना'
भय है
इन्हीं सपनों के मर जाने का
पूरी तरह सरकारी कर्मचारी बन जाने का
भय है
दलाली के धंधों को इतने
करीब से देखते रहने के बावजूद
चुपचाप सन्नाटे में घिरे रहने के बावजूद
हर ख़ुशी से जुदा रहने के बावजूद
अपने वजूद को कायम रखने
के जज्बे के बावजूद
भय है
बहुत सी दीवारों के ढहने के बावजूद
चंद कटीली झाड़ियों में उलझने का
भय है
मीठी सी नींद में बहने का
भय है
१३ जून २०११
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