अनुभूति में
सावित्री तिवारी 'आज़मी' की रचनाएँ-
नई रचना—
अपने तो आख़िर अपने हैं
कविताओं में—
आओ दीप जलाएँ
कर्म-
दो मुझको वरदान प्रभू
पर्यावरण की चिंता
फिर से जवां होंगे हम
वेदना
शिक्षक
सच्चा सुख
संकलन में—
जग का मेला–
मिक्की माउस की शादी
|
|
शिक्षक
बदल गया परिवेश अब, शिक्षक का
भी मान कहाँ।
शिक्षक अब केवल शिक्षक है, अब उसका सम्मान कहाँ।
दर-दर रहे भटकता जीवन भर बदली
के चक्कर में।
पूँजी पूरी हो जाती बस दूध चाय और शक्कर में।
सपने में भी सुविधाओं का मिले उसे सामान कहाँ।
गाड़ी बंगला दूरभाष पर,
शिक्षक का अधिकार नहीं।
सूट बूट की तरफ़ देखना भी उसको दरकार नहीं।
कुर्ता पाजामा और साइकिल, बिन उसका उद्धार कहाँ।
सर्वपल्ली राधाकृष्णन से,
ज्ञान जो मिला विरासत में।
उसके ही निर्वहन के कारण, फँसा हुआ है सांसत में।
सब कहते हैं अब उसमें, ज्ञान का वह भंडार कहाँ।
कहे 'आज़मी' कोशिश करते हैं,
फिर भी कुछ लोग यहाँ।
ढूँढ़-ढूँढ़ कर लाते हैं, छिपे हैं गुरुवर जहाँ कहाँ।
बिना उन्हें सम्मान दिए फिर, अपना है मान कहाँ।
24 अप्रैल 2005
|