अनुभूति में
सावित्री तिवारी 'आज़मी' की रचनाएँ-
नई रचना—
अपने तो आख़िर अपने हैं
कविताओं में—
आओ दीप जलाएँ
कर्म-
दो मुझको वरदान प्रभू
पर्यावरण की चिंता
फिर से जवां होंगे हम
वेदना
शिक्षक
सच्चा सुख
संकलन में—
जग का मेला–
मिक्की माउस की शादी
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दो मुझको वरदान
प्रभू मेरा लक्ष्य मुझे
मिल जाए, दो ऐसा वरदान प्रभू
मानव सेवा ही जीवन हो, दो ऐसा वरदान प्रभू
मानव सेवा ही जीवन हो।
अँधे की आँखें बन जाऊँ, लंगडे
की बैसाखी मैं।
कोढ़ी की काया बन जाऊँ, बाँझन की संतान प्रभू।
मानव सेवा ही जीवन हो।
निर्धन की माया बन जाऊँ, सब
दुखियों की साथी मैं।
मुझमें कभी गुरूर न आए, मिट जाए अभिमान प्रभू।
मानव सेवा ही जीवन हो।
सुई का धागा बन जाऊँ, और दीपक
की बाती मैं।
मंदिर की घंटी बन जाऊँ, बजूँ करूँ कल्याण प्रभू।
मानव सेवा ही जीवन हो।
सेवा की प्रतिमूर्ति बनूँ
मैं, सेवक ही कहलाऊँ मैं।
जग के सारे कष्ट मिटा दो, दुख का मिटे निशान प्रभू।
मानव सेवा ही जीवन हो।
खड़ी 'आज़मी' द्वार तिहारे,
बारंबार पुकारूँ मैं।
अब तो सुन लो विनती मेरी, दे दो अब वरदान प्रभू।
मानव सेवा ही जीवन हो।
16 फरवरी 2005 |