अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

अनुभूति में सावित्री तिवारी 'आज़मी' की रचनाएँ-

नई रचना—
अपने तो आख़िर अपने हैं

कविताओं में—
आओ दीप जलाएँ
कर्म- 
दो मुझको वरदान प्रभू
पर्यावरण की चिंता
फिर से जवां होंगे हम
वेदना
शिक्षक
सच्चा सुख

संकलन में—
जग का मेला– मिक्की माउस की शादी

  आओ दीप जलाएँ

दीपों का त्यौहार दिवाली,
आओ दीप जलाएँ।
हर दिल को खुशियाँ बाँटें,
हर दिल में प्यार जगाएँ।।
हो आदान-प्रदान मिठाई,
सबको दें सौगातें।
मीठी-मीठी याद रहे,
बिसरा दें कड़वी बातें।।

स्वागत करें लक्ष्मी का,
वरदान चलो मिल माँगे।
धन दौलत सुख शांति दे माँ,
दु:ख दरिद्र सब भागें।।
कहे 'आज़मी' मैं चाहूँ,
हर रोज़ दिवाली आए।
मेहमानों पकवानों संग,
फुलझड़ियाँ दीप जलाएँ।।

24 अक्तूबर 2005

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter