अनुभूति में
सावित्री तिवारी 'आज़मी' की रचनाएँ-
नई रचना—
अपने तो आख़िर अपने हैं
कविताओं में—
आओ दीप जलाएँ
कर्म-
दो मुझको वरदान प्रभू
पर्यावरण की चिंता
फिर से जवां होंगे हम
वेदना
शिक्षक
सच्चा सुख
संकलन में—
जग का मेला–
मिक्की माउस की शादी
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कर्म
जब-जब कीचड़ में पड़ा, अनजाने
भी लात।
छीटा मुँह पर ही पड़ा, सत्य पुरानी बात।।
सत्य पुरानी बात, नीच को कीच
सुहाए।
ऊँचा आसन देख, मूर्ख का मन बौराए।।
जोड़ो जतन नर्क से मत, सत्ता
पापी की छीनों।
करना मरना उसकी फितरत, साल महीनों।।
कहे 'आज़मी' सही बात, है
दुनिया रंग रंगीली।
अपने कर्म से रखो मतलब, छोड़ राह पथरीली।।
24 अप्रैल 2005 |