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अप्पू
थोड़ी-सी जगह
बेखबर लड़की
याद
रह-रह कर

 

याद

हर बार की तरह
इस बार भी
पूरे ठाठ के साथ खिला है अमलतास
चैत की भोर का जादू
बिखरा है चारों ओर
पत्तियों की ओट में छिपकर
लगातार कूक रही है कोयल

ऐसे में
दबे पाँव चली आई है तुम्हारी याद
कुछ और जोर से
कूक उठी है कोयल
और-
दुनिया की सारी हँसी समेटकर
हँस पड़ा है अमलतास।

२ जून २०१४

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