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बेखबर लड़की
याद
रह-रह कर

 

बेखबर लड़की

बसंत की हवाओं में लिपटी चाँदनी में डूबी
लड़की की आँखों में
गमक रहे सपनों को
पढ़ रहा है
आकाश में टहलता चाँद
गौने के इंतजार में
आँगन में खिली चाँदनी में
बरतन माँजती लड़की
रह-रह कर मुस्कुरा उठती है
गुनगुनाती है गीत
हो उठती है बेसुध सी
और धुले बरतनों के साथ
समेट कर रख देती है
बिना धुले बरतन
माँ तरेर रही है आँखें
खिल रही है आँगन में चाँदनी
सपनों में डूबी लड़की
आँगन बुहार रही है
रात को सुबह समझ कर
चाँद हँस रहा है उस पर
माँ तरेर रही है आँखें
पर सबसे बेखबर लड़की
डूबी है सपनों में
हुलस रही है मन ही मन।

२ जून २०१४

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