अनुभूति में
सविता मिश्रा
की
रचनाएँ -
नयी रचनाओं में-
उन बच्चों के लिये
काश! ऐसा होता
घसियारिनें
बित्ता भर रोशनी
समुद्र के तट पर
छंदमुक्त में-
अप्पू
थोड़ी-सी जगह
बेखबर लड़की
याद
रह-रह कर |
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अप्पू
कंधे पर उछलकर आ बैठी
धूप की नन्हीं-सी बच्ची
यूँ लगा कि जैसे
उछल कर अप्पू ने
नन्हीं-नन्हीं मुट्ठियों में
थाम लिए हो कंधे।
शहतूत के पेड़ पर
चढ़ती-उतरती रहीं गिलहरियाँ
बिल्कुल वैसे ही
जैसे गोद में चढ़ती-उतरती थी अप्पू।
समन्दर के सीने पर
जाग उठी अलसाई सुबह
कि जैसे जागी हो अप्पू
अभी-अभी कुनमुना कर
नारियल के पेड़ों के पीछे
हँसा सूरज का बच्चा
जैसे आँचल में छिपकर
अप्पू ने बिखेरी हो दूधिया हँसी
दिन छिपने पर
नन्हें पाँवों के निशान
छोड़ गया है कोई
जैसे लुका-छिपी खेल रही हो अप्पू।
२ जून २०१४ |