अनुभूति में
सविता मिश्रा
की
रचनाएँ -
नयी रचनाओं में-
उन बच्चों के लिये
काश! ऐसा होता
घसियारिनें
बित्ता भर रोशनी
समुद्र के तट पर
छंदमुक्त में-
अप्पू
थोड़ी-सी जगह
बेखबर लड़की
याद
रह-रह कर |
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रह-रह कर
रह-रहकर
खिल रहे हैं अनार के फूल
और पेड़ के नीचे बैठी
लड़की की आँखों में
टपक रहा है
अनार का रस
कोई और भी है
जो ढलती शाम में
उतर रहा है
उसकी यादों में धीरे-धीरे
अनार के फूलों को चूम रही है सूरज की किरनें
समूचा पेड़
लजा गया है लड़की की तरह।
रह-रह कर
टपक रहा है अनार का रस।
२ जून २०१४ |