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प्रेम के दोहे
सूरज सन्ध्या से हुआ, क्षण भर मिल कर दूर,
जाते-जाते दे गया, चुटकी भर सिन्दूर ।
तन चन्दन सा हो गया, सांसें हरसिंगार,
रोम रोम भीगा सखी, इतना बरसा प्यार।
महकी सांस गुलाब सी, जड़ से मिटे बबूल,
जब से कोई कर गया, मन की बात कुबूल।
देख तुम्हें ऐसा लगा, देख लिया मधुमास,
पग-पग पर कलियां खिलीं, महक उठा वातास।
पोर पोर आखें उगी, रोम-रोम में कान,
प्राण प्रतीक्षाकुल हुए, प्रिय आवन की जान।
भूख प्यास निदिंया उड़ी, खोया चित का चैन,
अजब इशारे कर गये, झुके-झुके दो नैन।
मन में अथक उमंग है, थकन बँधी है पाँव,
जाने कितनी दूर है, वो सपनों का गांव।
कोरे हाथों पर चढ़ा , जब मेहंदी का रंग ,
पल-पल फिर कटने लगा, बस सपनो के संग।
धानी चूनर पर खिले, जब टेसू के फूल,
धरती तब गाने लगी, अपनी सुध बुध भूल।
चितवन चितवन से मिली, बदले सारे रंग,
गोरी के गालों खिले, फागुन के सब रंग।
१ जून २००५
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