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भक्ति के दोहे
जन मानस में लिख गये, अमिट राम का नाम,
राम काव्य के अमर कवि, तुलसी तुम्हें प्रणाम।
भर जायेगा नेह घट, रहे न एक अभाव,
मन शबरी का भाव हो, तन केवट की नाव।
मृग तृष्णाएँ छल गईं, कंचन हिरन समान,
भटके मन का राम अब, मिले नहीं हनुमान।
अग्नि परीक्षा भी कहाँ, जोड़ सकी विश्वास,
युग बीते, बीता नहीं, सीता का बनवास।
१ जून २००५
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