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दर्द के दोहे
दर्द सिन्धु सा हो गया, गहन और गम्भीर,
तब गीतों में बूँद भर, छलका उसका नीर।
पथरीली आँखें हुईं, सूख गया सब नीर,
भीतर सिर धुनती रही, मेरी पागल पीर।
दुनिया ने देखी सखी, पावस की बरसात,
ना देखे रोते नयन, सारी-सारी रात।
दादुर, मोर, पपीहरा, राए कर-कर बैन,
पीर धरा की देख कर, बरसे नभ के नैन।
हँसते अधर छिपा गये, अंतस घोर उदास,
बूँद बूँद लिखते रहे, आँसू निज इतिहास।
१ जून २००५
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