अनुभूति में
सचिन श्रीवास्तव की रचनाएँ—
छंदमुक्त में—
इस समय- चार कविताएँ
कसैली संभावना
तकरीबन आख़िरी
नीयत तुम्हारी नियति हमारी
मकान जो कहीं नहीं है
माफी
लफ़्ज़
सच से बड़ी उम्मीद
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तकरीबन आखिरी
तनी हुई मुट्ठियों से निकल रही
थी आँच
सत्ता के माथे पर छलकने का लगा था पसीना
गर्म हो रही थी हौसले की भट्टी
वे आए
अखबार लेकर
पहले हवा की ठंडक पहुँचाई
फिर पोंछने लगे सत्ता के पसीने को
खबरों की स्याही से
बस एक बात थी जो भरोसा देती थी
ऐसा करने वाले
संख्या में बहुत थोडे थे
१५ मार्च २०१० |