अनुभूति में
सचिन श्रीवास्तव की रचनाएँ—
छंदमुक्त में—
इस समय- चार कविताएँ
कसैली संभावना
तकरीबन आख़िरी
नीयत तुम्हारी नियति हमारी
मकान जो कहीं नहीं है
माफी
लफ़्ज़
सच से बड़ी उम्मीद
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माफी
हमें माफी माँगनी थी
अपने दोस्तों से
जिन्होंने जिंदगी के सपाट रास्तों पर
बिछकर गुजारीं
खुशियों की जगमग दोपहरें
जिन्होंने जतन से टाँके लगाए
दुखों के फटे चिथडों पर
हम सचमुच माफी चाहते थे
गहरी नींद में
भविष्य की बुनावट के रेशे तलाशते दोस्तों से
हम जिन्होंने
उम्र की पगडंडी पर कभी तेज दौड लगाई
कभी बेकार सुस्ती में अलमस्त जमाई ली
और कभी खुशियों का गट्ठर उछाल दिया
तारों की ओर
हम माफी के हकदार नहीं थे
और हमें माफी चाहिए थी
दोस्तों से
बिना झिझक और शर्मिंदगी के
आँखों में आँखें डालकर माफी चाहते थे हम
जीवन की नयी लय तलाशने की सजा मुकर्रर होने के ठीक पहले
१५ मार्च २०१० |