सच से बडी उम्मीद
इतनी तो बदली दुनिया
इतना तो हुए बेहतर
मारकाट के वीभत्स इतिहास
लूट के शातिरपन
और शोषण के कई तरीकों से कर ही दिया बेनकाब
बैलगाडी से हवाईजहाज का सफर यों
तो तय नहीं किया
अब तो कुछ ही दूर है चाँद
रहेंगे वहाँ, चकमक चाँदनी के दरीचों पर
कुलाँचे भरते हुए करेंगे प्रेम
इसी दुनिया से
जिसका चौथाई हिस्सा डूबा है लबालब पानी में
जैसे डूबे हैं हम प्रेम में
पहुँच बढ रही है सुविधाओं तक
लोगों की
चमकते शहरों में रह रही है दुनिया की ३० फीसदी आवाम
गाँवों में भी पहुँच चुके हैं मोबाइल
कितना अच्छा होता
अगर होती बदलाव की यह बयार
इतनी ही सीधी, सपाट और सम्मोहित करने वाली
अभी अभी आई रपटें दुनिया की
४० फीसदी आवाम के भूखे पेट दिखा रही हैं
गुजरती हुई हवा अहसास दिला रही है अपनी गर्मी का
कोपनहेगन में जुटी भीड को ठेंगा दिखा दिया
शांति के सबसे बडे पुरस्कार से सम्मानित किए गए राष्ट्रपति ने
इतना ही होता तो कर लेते यकीन
कि विरोध की आवाजें हैं
तो बदल ही जाएगा वक्त
लेकिन देखिए तो किस निर्लज्जता से
डिस्को थेक में नाच रहे हैं लिपे पुते अधनंगे जिस्म
किस शान से गुजर रही हैं भारी भरकम कारें
जबकि बिल्कुल इसी वक्त दो जून की रोटी के लिए
उडीसा से लेकर मोजाम्बिक तक
और ठंड से कंपकपाते साइबेरिया से लेकर पसीने से लथपथ तमिलनाडु तक
पेट और पीठ एक हो गए हैं
जैसे सारी की सारी तीसरी दुनिया
अब इसे यकीन कहें या भोलापन
बदलाव की हल्की आहट से चीख पडते हैं हम
खुशी से भर उठते हैं
चेहरे कि उम्मीद बाकी है
कि और बेहतर होगी दुनिया
बस जो चुप बैठे हैं उनकी आवाज का इंतजार है!!!!
१५ मार्च २०१० |