अनुभूति में
सचिन श्रीवास्तव की रचनाएँ—
छंदमुक्त में—
इस समय- चार कविताएँ
कसैली संभावना
तकरीबन आख़िरी
नीयत तुम्हारी नियति हमारी
मकान जो कहीं नहीं है
माफी
लफ़्ज़
सच से बड़ी उम्मीद
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मकान जो कहीं नहीं
है
वे घूमते हैं हाथों में हाथ
थामे
उनकी आँखों में रिश्ते का यकीन है
उनकी पलकों में
विश्वास का पानी है
भटकते हैं मकान दर मकान
अजनबी शहर में
आँखें उठती हैं शक की शक्ल में
हर चेहरे पर चस्पां हैं सवालों की तल्खी
अपने हाथों को कसकर
वे झाँकते हैं टू लेट की
तख्तियों में बसी चाहरदीवारी में
अपनी दुनिया बसाने की मासूम इच्छा जो अभी अभी थी सबसे अदम्य
आकांक्षा
पसीने के बीच बहने लगी है
कोकाकोला की बोतल के सहारे
लडते धूप से
वे बढ रहे हैं अगले मकान की ओर
उन्हें कहीं नहीं जाना है
वे कहीं नहीं जाएँगे
यहीं रहेंगे
किस्सों में उनका जिक्र आएगा
कहानियों में उन्हें पहचाना जाएगा
वे साथ-साथ आए हैं शहर में
साथ-साथ रहेंगे
जैसे रहते चले आ रहे हैं सात जन्मों से
१५ मार्च २०१० |