शांति के शहतूत
शान्ति के शहतूत सारे राख होकर रह गए
कौन सी ये बदहवा मेरे चमन में छा गई।
वो अहिंसा नाम की कोयल जो रहती थी यहाँ
सुन रहे हैं आज बाजों की झपट में आ गई|
इक पपीहा पूछता था बादलों से इस तरह
ये तो बदली स्वाति की थी आग क्यों बरसा गई ?
जंगे-आज़ादी में जिनके खून की चर्चा रही
बाद- आज़ादी के उनको ही सियासत खा गई।
हो सके तो मंदिरों से मस्जिदों से पूछना
मुल्क को क्यों नफरतों वाली सियासत भा गई ?
२१ अप्रैल २०१४
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