मौसम का जादूगर
मौसम का जादूगर दृष्टि गया फेर।
आओ फिर रंगों में डूबें एक बेर।।
तितली के पंख मुडें उपवन की ओर।
गाँवों को जगा रही बासंती भोर।।
कोसों तक फैल गई महुआ की गंध।
कोयलिया बाँच रही मधुऋतु के छंद।।
खेतों से बार बार कोई रहा टेर।
आओ फिर रंगों में डूबें एक बेर।।
कान्हा की बंसी में राधा के बोल।
किसने दी सांसों में मदिरा ये घोल।।
चरवाहे भूल गए जंगल की राह।
एक मीन नाप रही सागर की थाह।
दर्पन में रूप आज कोई रहा हेर।
आओ फिर रंगों में डूबें एक बेर।।
कलियों के अधरों को भ्रमर रहे चूम।
पनघट चौपालों पर आज बड़ी धूम।।
कुदरत के हाथों में मेहंदी का रंग।
अंग-अंग में सिहरन रोपता अनंग।।
घूंघट के उठने में थोड़ी ही देर।।
आओ फिर रंगों में डूबें एक बेर।।
१ मार्च २००६
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