अनुभूति में
राजेन्द्र नागदेव
की रचनाएँ-
कविताओं में-
आषाढ़ में बारिश, एक लँगड़ा और मेघदूत
यह समय
तुम्हें कब्र में
समय झरता रहा
बस यूँ ही
डायनासॉर
रिमोट कंट्रोल
संकलन में-
गाँव में अलाव -
एक ठंडी रात
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समय झरता रहा
समय झरता रहा
देर तक
घड़ी की सुइयों से
झरने की तरह
और अंजुरी में भरते ही
उंगलियों के बीच से
बह गया।
समय आया था धूमकेतु की तरह
धूमकेतु की तरह निकल गया
लम्बे प्रवास पर
सुना है ध़ूमकेतु
लौटता अवश्य है
शताब्दियों बाद
उसकी उम्र के अब
बीस बाईस या पच्चीस वर्ष
शेष हैं।
समय
उसकी धूल भरी छत पर
पंख कटे परिंदे की तरह
आकर गिरा था कभी
वह सिर्फ पिंजरा बनाता रहा
पता नहीं कब
पंख उग आए
और फड़फड़ा कर
उड़ गया समय
धूल पर छोड़
अपने हस्ताक्षर
कि कभी उतरा था वह
उस छत पर भी।
समय
घोड़े की तरह भी
आया था दौड़ता हुआ
टापों की आवाज
अच्छी तरह
सुनी थी उसने
पर उड़ती हुई धूल से
आँखें धुँधला गईं थीं
फिर आँखें जब खुलीं
न घोड़ा था
न धूल
न टापों की आवाज थी।
अवकाश के क्षणों में
पतंग की तरह
मांझे से बाँध
उड़ाता रहा वह समय को
कि
जब चाहेगा
उतार लेगा
पर हुआ यों
कि एक हल्की सी आँधी आई
और मांझे को काटकर
चली गई।
समय की किताब में ढूँढते हुए अपना नाम
वह भूल जाता है अक्सर
कि उसमें
सभी के नाम नहीं होते। |