रात भर
भौंकते रहे कुत्ते
और रात भर
सुलगता रहा अलाव
और तापते रहे लोग
लपटों पर अपनी हथेलियाँ।
एक पत्ता
थरथराता रहा
तालाब की लहरों पर
ठंड से ठिठुरता
रात भर।
आवारा
सूर्य
सभी पर डाल
ठंडी, काली चादर
निकल गया कहीं
सारी ऊष्मा साथ लेकर
एकाकी।
अलाव बुझने
लगा
कुत्ते और आदमी
सरक आए हैं
अलाव के पास
अपने अपने हिस्से की
थोड़ी थोड़ी गर्मी के लिये।
कब तक
जीवित रहेंगी
अलाव की चिंगारियाँ!
क्यों नहीं
एक एक चिंगारी उठा कर
निकल पड़ते लोग
अंधेरी पगडंडियों पर
सूरज की खोज में
और छीन लाते
अपने हिस्से की
सारी ऊष्मा
अपने हिस्से की
सारी धूप?
-
राजेन्द्र नागदेव
|