अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

गाँव में अलाव
जाड़े की कविताओं को संकलन

गाँव में अलाव संकलन

एक ठंडी रात


रात भर
भौंकते रहे कुत्ते
और रात भर
सुलगता रहा अलाव
और तापते रहे लोग
लपटों पर अपनी हथेलियाँ।

एक पत्ता थरथराता रहा
तालाब की लहरों पर
ठंड से ठिठुरता
रात भर।

आवारा सूर्य
सभी पर डाल
ठंडी, काली चादर
निकल गया कहीं
सारी ऊष्मा साथ लेकर
एकाकी।

अलाव बुझने लगा
कुत्ते और आदमी
सरक आए हैं
अलाव के पास
अपने अपने हिस्से की
थोड़ी थोड़ी गर्मी के लिये।

कब तक जीवित रहेंगी
अलाव की चिंगारियाँ!
क्यों नहीं
एक एक चिंगारी उठा कर
निकल पड़ते लोग
अंधेरी पगडंडियों पर
सूरज की खोज में
और छीन लाते
अपने हिस्से की
सारी ऊष्मा
अपने हिस्से की
सारी धूप?

- राजेन्द्र नागदेव

(कवि के काव्यसंग्रह 'एक पत्ता थरथराता रहा' से साभार)

 

अबके शरद

ना कभी देखी
ना ही सुनी
अब के ऐसी
शरद ऋत आई।

बहार लाई
खुशियों की
झंकार लाई
मन में समायी।

जीवन की
हलकी हलकी धुंध में
ओस की बूँदों-सा
चमकता कोमल
प्यार लाई।

एक सिरहन-सी
तन में मन में
अब के ऐसी
शरद ऋत आई।

- आस्था

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter