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अनुभूति में राजेन्द्र नागदेव की रचनाएँ-

कविताओं में-
आषाढ़ में बारिश, एक लँगड़ा और मेघदूत
यह समय
तुम्हें कब्र में
समय झरता रहा
बस यूँ ही
डायनासॉर
रिमोट कंट्रोल

संकलन में-
गाँव में अलाव - एक ठंडी रात

 

यह समय

यह समय ही ऐसा है
कि च़िथड़े-चिथड़े होकर उड़ती
किसी अन्य की देह को देख
सबके हाथ अपने- आप
अपनी देह को
टटोलने लगते हैं
आश्वस्त होते हैं
कि गर्दन कान स़िर और छाती सभी
निर्धारित जगहों पर
सही आकारों में उपस्थित हैं
पाँव देह का भार
लगभग सही तरीके से
उठाए हुए हैं
कौन जाने कितनी लंबी
इस आश्वस्ति की उम्र होगी
कुछ वर्ष म़हीने द़िन
या केवल कुछ पल?
अभी तो
विराट हो गया है
आश्वस्ति का यही एक क्षण
जीवित बचे रहने की प्रतीति का
यही पल
खिंच कर
सदी बन गया है।

बचे हुए लोग
यत्न से
अपनी साँसें सम्हाले हैं
सांध्य वेला में
घर वापसी पर
सुगंध आएगी
उन्हें फूलों की
गमलों में यद्यपि
सूखी टहनियों पर
मात्र मकड़ियों के जाले हैं।

विस्फोट का धुआँ
अभी तक
अनेकों की चेतना
धुँधला रहा है
धुंध के बीच
कल सुबह अखबार में
उंगलियाँक्त
व्यग्रता से ढूँढेंगीं
नामों की सूचि में
छूटे हुए नाम।

बस में मैंने
सीट के नीचे देखा था इधर उधर
सहयात्री की ज़ेब पर
किया था संदेह
फुटपाथ पर चलते हुए
सतर्क रहीं आँखें
और कहाँ-कहाँ रखी जा सकती थी दृष्टि?
बम को बीच बाज़ार फटना था
फट गया
चलो, अच्छा हुआ
रूपये नहीं थे
बिट्टू की पोषाख के लिये।

अस्पताल के शवागार में
आधे-अधूरे कई लोग होंगे
किस तरह पहचानेंगे
उन्हें
उनके पिता म़ाता ब़ंधु व बच्चे?
मेरे
कई दोस्तों के पास
परिचय-पत्र तक नहीं थे।

अग्नि की छत रचकर
उसके नीचे
छाया तलाशने वाले
अग्नि की तपन से
जलते क्यों नहीं?
जलते क्यों नहीं?

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